Last modified on 14 अगस्त 2018, at 18:07

गर्द ने ख़ैमा तान लिया था / नासिर काज़मी

 
गर्द ने ख़ैमा तान लिया था
धूप का शीशा धुंधला-सा था

निकहतो-नूर को रुख़्सत करने
बादल दूर तलक आया था

गये दिनों की ख़ुशबू पाकर
मैं दोबारा जी उट्ठा था

सोती जागती गुड़िया बनकर
तेरा अक्स मुझे तकता था

वक़्त का ठाठें मारता सागर
एक ही पल में सिमट गया था

जंगल, दरिया, खेत के टुकड़े
याद नहीं अब आगे क्या था

नील गगन से एक परिंदा
पीली धरती पर उतरा था।