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गर्भस्थ क्षण / शलभ श्रीराम सिंह

एक-सिर्फ़ एक बार पलक झपकी
बिजली की कौंध से
सब कुछ प्रकाशित हो गया !
हवा तीर की तरह सीधी हुई
कोई सूखा समुद्र
औंधे मुँह नीचे उतर आया !
जिसकी परिधि में
जीवन का अर्थ ढूँढ़ा जा रहा है !
व्यर्थ ढूँढ़ा जा रहा है
क्योंकि :
वह क्षण अभी गर्भस्थ है
जो
समुद्र को सिर पर उठा कर
हवा को बीच से काटे,
प्रकाशित परिवेश को
बिम्ब-ग्रहण की क्षमता प्रदान करें !
जिसमें
भीतर-बाहर के अन्तर से
हम, एक दूसरे को पृथक-पृथक दिखें !
गढ़ें-परसें-लिखें !
(1966)