Last modified on 4 मार्च 2017, at 15:53

गळगचिया (10) / कन्हैया लाल सेठिया

एक छांट पड़ी’र दूजी छांट पड़ी, बादळियो अरड़ाट कर’र ओसर ग्यो।

आभो बोल्यो-अरै तूं तो माल मलीदो बांध’र ऊपर ल्यायो हो नीं? पाछो नीचै ही किंया खिंडा दियो?

बादळ कयो- ऊपरां कठेई मेलण नै ठौड ही को लादी नीं, बोझायो कती’क ताळ मरै हो?