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गळगचिया (21) / कन्हैया लाल सेठिया

रूँख रै पत्ताँ में ळुक्योड़ी कोयलड़ी बोली- कुहू। मारग बैंता बटाऊ नीजर उठा र बोल्यो-आ कठै क बोळी ? रूँख री ऊँचली टोेखी पर बैठ र कागलो बोल्यो-कुराँ कुराँ ! कोई आँख उठा र ही को देख्यो नीं।