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गळगचिया (28) / कन्हैया लाल सेठिया

आभै रै सूनै आँगणैं में एक नान्ही सी'क बादळी गुड़ाल्याँ चाल'र आगी। बादळी नै देख र मोरिया नाचण नै लागग्या, सीपटयाँ मूंड़ो खोल दियो'र करसै री आँख्याँ में सुख रा सपनाँ जागग्या ।
बादली पूछ्यो- पून अै सगळा म्हारै स्यूं के चावै हैं ?
पून कयो-बावळी अै सै थारै रोणै नै अड़िकै है।