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गळगचिया (48) / कन्हैया लाल सेठिया

दही पूछ्यो-झेरणाँ रोजीनाँ मथ मथ‘र म्हारो माजनूं बिगाड़ै की थारै ही पल्लै पड़ै है‘क नीं ? झेरण बोल्यो-कीड़याँ तो काळजो रात्यूं चूटै ही है और‘स की देख्यो नीं !