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गळगचिया (49) / कन्हैया लाल सेठिया

पग कयो- सुई तूं काटै नै तुरत फुरत ही किया काढ़ लै ?
सुई बोली-अरै भोळिया घर रो भेढू लंका ढ़ावै आ कैबत तो घणी पुराणी है।