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गवाही / रतन सिंह ढिल्लों

अब सर्दियों में
चाँद की चाँदनी में
लड़के बुक्कल मार कर<ref>कंबल लपेट कर</ref>
बाहर किसी के
गन्ने तोड़ने नहीं जाते
क्या पता वे ख़ुद ही
टहनियों की तरह
कड़क करके टूट जाएँ
गवाही तो फिर चाँद भी नहीं देगा ।
 
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला

शब्दार्थ
<references/>