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ग़ज़ल / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

सिफर से चले और आप आ गये शिखर तक
कोई जानता नहीं था भा गये नज़र तक।

चंद दिनों में आपकी तूती बोलने लगी
डंके की आवाज जैसे छा गये ख़बर तक।

चमत्कार नहीं यह मेहनत का नतीजा था
जो देखते – देखते लुभा गये भंवर तक।

बस विश्वास के भरोसे ही चलते गये वो
मंजिलें मुश्किल भरी थी भा गये सफ़र तक।

कौन कहता है जीत नहीं होती सत्य की
करिश्माई खेल आप दिखा गये उमर तक।