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ग़ज़ल के शेर / शमशेर बहादुर सिंह

हमारे ख़ूँ में वही लाल काम है आलम

तेरी निगाह में जो एक जाम है आलम


तेरी निगाह के पर्दों में वो भी छुप जाए

हमारे पहलू में जो बेनियाम है आलम


बदल रहा है बढ़ा जा रहा है तेज़ी से

अवाम वक़्त की रौ है, अवाम है आलम


न तेग़े-तेज़, न अब्रू का बल, मगर 'शमशेर'

हमारी ख़ाक के ज़र्रों का नाम है आलम