19
तू तो एक बहाना था
मुझको धोखा खाना था
मौसम रोज़ सुहाना था
उसका आना - जाना था
आईना दिखलाना था
उसको यूँ समझाना था
आज ज़माना क्या जाने
मुझसे एक ज़माना था
कबिरा की उस चादर का
20
मुझको समझा मेरे जैसा
वो भी ग़लती कर ही बैठा
उसका लहजा तौबा ! तौबा !!
झूठा क़िस्सा सच्चा लगता
महफ़िल- महफ़िल उसका चर्चा
आख़िर मेरा क़िस्सा निकला
मैं हर बार निशाने पर था
वो हर बार निशाना चूका
आख़िर मैं दानिस्ता डूबा
तब जाकर ये दरिया उतरा
21
और सुनाओ कैसे हो तुम
अब तक पहले जैसे हो तुम
अच्छा अब ये तो बतलाओ
कैसे अपने जैसे हो तुम
यार सुनो घबराते क्यूँ हो
क्या कुछ ऐसे - वैसे हो तुम
क्या अब अपने साथ नहीं हो
तो फिर जैसे - तैसे हो तुम
ऐशपरस्ती ? तुमसे ? तौबा !!!
मज़दूरी के पैसे हो तुम