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ग़लत हाथ के हथियारों ने / नईम

ग़लत हाथ के हथियारों ने-
क़लम कर दिया,
छाँवदार बूढ़े रूखों को!

ठूँठ खड़े, कंधों पर जिनके
लिए लोथड़े बैठी चीलें,
हवा प्रेतबाधाओं जैसी
सूख गईं नीली जल-झीलें;

आम सभा पहरेदारों ने-
महायज्ञ-सा
इस्तेमाल किया सूखों को!

बाम अंग लकवे के मारे
दाएँ जिसे घसीट रहे हैं,
आगत बंधु! अधर में लटके
अपना माथा पीठ रहे हैं;

पत्र पठाए हरकारों ने-
गलत पते पर
घर बैठे अंधे भूपों को!

जिनके हाथों की गोटी हम
फर्जी वे, कल तक थे प्यादे,
महाकाल के दर्पण में ये
आदम के क़द से भी आधे;

मझधारे इन मल्लाहों ने-
जलसमाधि दी,
अपने ही इन प्रतिरूपों को!