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प्राप्यावन्तीनुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धा-
न्पूर्वोद्दिष्टामनुसर पुरीं श्री विशालां विशालाम्।
स्वल्पीभूते सुचरितफले स्वर्गिणां गां गतानां
शेषै: पुण्यैर्हृतमिव दिव: कान्तिमत्खण्डमेकम्।।
गाँवों के बड़े-बूढ़े जहाँ उदयन की कथाओं
में प्रवीण हैं, उस अवन्ति देश में पहुँचकर,
पहले कही हुई विशाल वैभववाली उज्जयिनी
पुरी को जाना।
सुकर्मों के फल छीजने पर जब स्वर्ग के
प्राणी धरती पर बसने आते हैं, तब बचे हुए
पुण्य-फलों से साथ में लाया हुआ स्वर्ग का
ही जगमगाता हुआ टुकड़ा मानो उज्जयिनी
है।