Last modified on 2 मई 2009, at 00:36

गाँव खेतों-क्यारियों में बोलता है / ऋषभ देव शर्मा

गाँव, खेतों-क्यारियों में बोलता है
चीख में, सिसकारियों में बोलता है

पड़ गईं कितनी दरारें, आज नक्शा
तीन-रंगी धारियों में बोलता है

आपका बाजार लुटना है जरूरी
मांस - ज़िंदा, लारियों में बोलता है


दूध मत छीनो, दिखाकर झुनझुना यूँ
पालना किलकारियों में बोलता है

आपका चेहरा रँगेगा खून मेरा
आपकी पिचकारियों में बोलता है