शरद गेह ज्योत्सना से लीप गया ।
ठाँव-ठाँव सजा स्वर्ण-दीप गया ।
धानों पर चमकी छितरा गई ।
सरसों की चूनरी रंगा गई ।
सनई की किंकिणियाँ बोल उठीं ।
हवा गन्ध मधुर-मधुर घोल उठी।
शरद गेह ज्योत्सना से लीप गया ।
ठाँव-ठाँव सजा स्वर्ण-दीप गया ।
धानों पर चमकी छितरा गई ।
सरसों की चूनरी रंगा गई ।
सनई की किंकिणियाँ बोल उठीं ।
हवा गन्ध मधुर-मधुर घोल उठी।