दिन-सी रोशन आंखों
और
रात-जैसे चमकीले बालों वाली
एक लड़की
अक्सर सपने में
अपनी चप्पल नहीं ढूंढ पाती
तिस पर भी वह
उलटी ठोंकी गई
कीलों वाले रास्ते पर
नंग़े पांव
भागती चली जाती है
बीस घरों वाले
इसे छोटे-से गांव की
मैली धूप में
रात-जैसे चमकीले बालों वाली
लड़की की चप्पल
कभी लुढ़कते पत्थरों तले दब जाती है
तो कभी
शिलाजीत की चिकनी चट्टानों के पीछे
छिप जाती है
दिन में
जागते हुए भी
देहरी को लांघकर
पूरी तरह सजग
क्यों भागती चली जाती है यह
एक जोड़ी चीथड़ा पांव लिए
गांव के साथ लगे जंगल में
जहां प्राचीन चौकोर पत्थरों से बने
नील-रत्नी रास्तों पर
चुड़ैल बाऊली से शुरू होकर
देवता के मन्दिर तक
देवदारूओं की भीगी जोगिया फलियां
भूले-भटके राहगीरों के जूतों तले पिसकर
अपने सब रंग
धरती को दे जाती है
यह लड़की चलती है
चट्टानों को थपथापाती
लोक सरगम बजाती
शिखर-दर-शिखर
लुढ़कते-अखरोटों की पीछे दौड़ती
धूप की चुनरी निचोड़ती
शिला पर
मूर्ति-सी सजी
नालू के बहते जल में
बिवाईयों-फटे-पांव हिलाती
गांव की लड़की
सपनों में गुम चप्पल पर चकित.......
..........
भला इतनी बेमतलब-सी बात की बात
वह किससे कहे
कैसे कहे
क्योंकर कहे
दिन-सी उजली आंखों
और
रात-जैसे चमकीले बालों वाली
यह लड़की।