तुम कहते, ‘गाओ आज गीत !
है पर्व मिलन का शुभ पुनीत !’
जीवन में सुखमय लहरों का
कंपन बरबस भर देते हो,
और तभी आ चपके-चुपके
उर धन-राशि चुरा लेते हो,
खो जाते भाव उदासी के
:
तुम दुःख भुला देते अतीत !
तुम मधु-पूरित शीतल निर्झर
हो मेरी जीवन-सरिता के,
छा जाते हो प्रतिपल मेरे
प्राणों के स्वर में कविता के,
मूक पराजय की बेला में
मैं जाता तुमको देख जीत !
1949