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गाओ मधु प्रिय गान / रामकुमार वर्मा

गाओ मधु प्रिय गान!
सुनने को यह नभ नीरव है
गाओ मधु प्रिय गान॥
नव तरु ने अपना हृदय आज
पल्लव-पल्लव कर दिया आह!
जिससे वह छू ले एक बार
सु-मधुर सु-राग का सु-प्रवाह;
यह अनिल बना है अंग-हीन
छिपकर छूने की हुई चाह,
करने को नव छवि प्रतिबिम्बित
यह सरिता है उज्ज्वल अथाह;
मेरे जीवन के शतदल में
भर दो सुरभि महान॥
गाओ मधु प्रिय गान!