गाती बुलबुल भीमपलासी।
मनमौजी पत्ते पीपल के
करते हैं तबले पर संगत
बजा बांसुरी बीच-बीच में
भर देती है कोयल रंगत।
जंगल में संगीत सभा यूँ
जम जाती है अच्छी खासी।
वाह-वाह करने का देखो
मोरों का अंदाज़ निराला
बजा बजाकर ताली दुहरा
हुआ जाए भालू मतवाला।
भौंरे जी की गुन-गुन गुन में
होते पूरे राग पिचासी।