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गाय दुधारी / अमरेन्द्र

की बकरी, जों गाय दुधारी
चींटी से खोटा छै भारी।

पोखरी से नद्दी अच्छा छै
कुइयाँ सागर लुग बच्चा छै
गिद्ध रहै नै खोता में
स्वाद न जरो सुखौता में
घास उगै नै गाछी तोॅर
गाछी में तेॅ पीपर-बोॅर।
एकरौ सें उच्चोॅ छै ताड़;
के पैतै एकरोॅ रं बाढ़।

बँसबिट्टी में बैठी जो
घास मिलै तेॅ लेटी जो।