Last modified on 14 अक्टूबर 2015, at 05:55

गाली / सुशीला टाकभौरे

वफा के नाम पर
अपने आप को
एक कुत्ता
कहा जा सकता है
मगर
कुतिया नहीं
कुतिया शब्द सुनकर ही लगता है
यह एक गाली है
क्या इसलिए कि वह स्त्री है
उसका चरित्र
उसकी वफा
कई बटखरों में तौली जाती है

कुत्ता और कुतिया एक-दूसरे के पूरक हैं
चरित्र के नाम
कुत्ता वफादार
और
‘कुतिया’ गाली क्यों बन जाती है

पुरुष-प्रधान समाज में
समर्पण हो या
विद्रोह
दुर्गुण का दोष स्त्री पर ही
मढ़ा जाता है
पुरुष के दुर्गुणों पर
मनु-नाम की चादर
ओढ़ा दी जाती है!