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गिरे तो गिरते गए / केदारनाथ अग्रवाल

गिरे तो
गिरते गए
गिरते-गिरते
आचार से
विचार से गिरते गए
न हुए अपने
न और के,
वनमानुष हुए कुठौर के।

रचनाकाल: ०९-०२-१९८०