उछल-कूद कर रही गिलहरी,
कितनी चंचल, मस्त, छरहरी।
पलक झपकते ये जा, ओ जा।
पल-भर क भी कहीं न ठहरो।
थपकी दी थी इसे राम ने,
तब से पड़ीं लकीरें गहरी।
उछल-कूद कर रही गिलहरी,
कितनी चंचल, मस्त, छरहरी।
पलक झपकते ये जा, ओ जा।
पल-भर क भी कहीं न ठहरो।
थपकी दी थी इसे राम ने,
तब से पड़ीं लकीरें गहरी।