मन को बहुत गिलहरी भाती
घर में रहती आती-जाती
भोली-भाली बहुत लजीली
देख सभी को यह शरमाती।
कभी रसोईघर के पीछे
करती रहती ऊपर-नीचे
कभी पेड़ पर यह चढ़ जाती
दिनभर सरपट दौड़ लगाती
चिक-चिक-चिक-चिक करती रहती
अपने नखरे यह दिखलाती
दिनभर चुनकर अपना चारा
अपने बिल में है घुस जाती।