Last modified on 30 अप्रैल 2023, at 23:14

गिलहरी के चावल / अनुराधा ओस

गिलहरी
आती है सर्र से
किसी हल्की आहट से
भागती है सर्र से

रसोई में रखे चावल
की गंध खींचती है तुम्हे
वैसे ही जैसे
बुद्ध को ज्ञान
जैसे धरती को पानी

एक मुट्ठी चावल
रोज धर देती हूँ
तुम्हारे लिए।

अपना प्राप्य तुम्हे प्रिय होगा ही
चिड़िया के लिए
किसान जैसे छोड़ देता है
कुछ दाने खेतों में
जैसे तालाब बचा के
रखता है पानी
अपने आत्मीय के लिए॥