Last modified on 16 जून 2016, at 10:10

गिला कैसा / अर्चना कुमारी

इस रात में बस बरस रही है हँसी
पुराने इश्क के गुलमोहर से
झर रहे फूल पत्ते
बासी और पीले पड़ गये
मेरा आइना
दरक जाता है सच पर मेरे
और गुलमोहर की वो एक डाल जो
मेरे कमरे से तुम तक जाती थी वो सूख रही है
तुम्हारे झूठ और वहम का पौधा हरा रहे
तुम्हारा आइना तुम पर हँसता रहे
मेरे दरके हुए आइने का सुकून
कोई खाक समझेगा
ये आसान काम है
तुम भी कर ही लो
मेरे नाम चंद कहानियाँ गढ ही लो
मेरी गवाही बस मेरा खुदा है
सोचती हूँ रंज पालूँ
पर अजनबियों से गिला कैसा!!