लेखनी से जब गिरें
झर स्वर्ग के मोती
पाने को उनको सीपियाँ
निज अंक हैं धोतीं।
कोई चले घर छोड़ जब
अहम् , दुख , सपने
उस केसरी आँचल तले
आ सभ्यता सोती।
जब तू शिशु था ईश ने आ
हाथ दो मोती दिये
एक लेखनी अनुपम औ' दूजे
भाव नित सुरभित नये।
ये हैं उसी की चिर धरोहर
तू गा उसी का नाम ले
जो नाव सब की खे रहा
उसे गीत उतराई तू दे।
तू गीत उन्नत भाल के रच
मन को तू खंगाल के रच
कृष्ण के कुन्तल से लिपटे
गीत अरुणिम गाल के रच।
तू दलित पे गीत लिख
और गीत लिख तू वीर पे
जो मूक मन में पीर हो
उसको कलम की नीर दे।
तू तीन ऐसे गीत रच जो
भू-गगन को नाप लें
माँ को, प्रभु को पाती लिख
लिख प्रेम को निष्काम रे।
ये गीत मेरा जो तुम्हारे
पाँव छूने आ रहा
जिस ठाँव तू गाये
ये उसकी धूल बस हटला रहा।
०५ अक्टूबर ०९