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रीति चलिबेकी चाहि, प्रीति पहिचानिकै |
आपनी आपनी कहैं, प्रेम-परबस अहैं,
मञ्जु मृदु बचन सनेह-सुधा सानिकै ||
साँवरे कुँवरके बराइकै चरनके चिन्ह,
बधू पग धरति कहा धौं जिय जानिकै |
जुगल कमल-पद-अंग जोगवत जात,
गोरे गात कुँवर महिमा महा मानिकै ||
उनकी कहनि नीकी, रहनि लषन-सी की,
तिनकी गहनि जे पथिक उर आनिकै |
लोचन सजल, तन पुलक, मगन मन,
होत भूरिभागी जस तुलसी बखनिकै ||