(32)
रागकेदारा
जेहि जेहि मग सिय-राम-लखन गए,
तहँ-तहँ नर-नारि बिनु छर छरिगे |
निरखि निकाई-अधिकाई बिथकित भए,
बच बिय-नैन-सर सोभा-सुधा भरिगे ||
जोते बिनु, बए बिनु, निफन निराए बिनु,
सुकृत-सुखेत सुख-सालि फूलि-फरिगे |
मुनिहु मनोरथको अगम अलभ्य लाभ,
सुगम सो राम लघु लोगनिको करिगे ||
लालची, कौड़ीके कूर पारस परे हैं पाले,
जानत न को हैं, कहा कीबो सो बिसरिगे |
बुधि न बिचार, न बिगार न सुधार सुधि,
देह-गेह-नेह-नाते मनसे निसरिगे ||
बरषि सुमन सुर हरषि हरषि कहैं,
अनायास भवनिधि नीच नीके तरिगे|
सो सनेह-समौ सुमिरि तुलसीहूके-से
भली भाँति भले पैन्त, भले पाँसे परिगे ||