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रागबसन्त
आजु बन्यो है बिपिन देखो, राम धीर | मानो खेलत फागु मुद मदनबीर ||
बट, बकुल, कदम्ब, पनस, रसाल | कुसुमित तरु-निकर कुरव-तमाल |
मानो बिबिध बेष धरे छैल-जूथ | बिच बीच लता ललना-बरुथ ||
पनवानक निरझर, अलि उपङ्ग | बोलत पारावत मानो डफ-मृदङ्ग |
गायक शुक-कोकिल, झिल्लि ताल | नाचत बहु भाँति बरहि मराल ||
मलयानिल सीतल, सुरभि, मन्द | बह सहित सुमन-रस रेनु बृन्द |
मनु छिरकत फिरत सबनि सुरङ्ग | भ्राजत उदार लीला अनङ्ग ||
क्रीडत जीते सुर-असुर-नाग | हठि सिद्ध-मुनिनके पन्थ लाग |
कह तुलसिदास, तेहि छाड़ु मैन | जेहि राख राम राजीव नैन ||