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सखि जबतें सीतासमेत देखे दोउ भाई |
तबतें परै न कल, कछू न सोहाई ||
नखसिख नीके, नीके निरखि निकाई |
तन-सुधि गई, मन अनत न जाई ||
हेरनि-हँसनि हिय लिये हैं चोराई |
पावन-प्रेम-बिबस भई हौं पराई ||
कैसे पितु-मातु प्रिय परिजन-भाई
जीवत जीवके जीवन बनहि पठाई ||
समौ सो चित करि हित अधिकाई |
प्रीति ग्रामबधुनकी तुलसिहु गाई ||