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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 36 से 50/पृष्ठ 6


(41)
जबतें सिधारे यहि मारग लषन-राम,
जानकी सहित, तबतें न सुधि लही है |

अवध गए धौं फिरि, कैधौं चढ़े बिन्ध्यगिरि,
कैधौं कहुँ रहे, सो कछू, न काहू कही है ||

एक कहै, चित्रकूट निकट नदीके तीर,
परनकुटीर करि बसे, बात सही है |

सुनियत, भरत मनाइबेको आवत हैं,
होइगी पै सोई, जो बिधाता चित्त चही है ||

सत्यसन्ध, धरम-धुरीन रघुनाथजूको,
आपनी निबारिबे, नृपकी निरबही है |

दस-चारि बरिस बिहार बन पदचार,
करिबे पुनीत सैल, सर-सरि, मही है ||

मुनि-सुर-सुजन-समाजके सुधारि काज,
बिगरि बिगरि जहाँ जहाँ जाकी रही है |

पुर पाँव धारिहैं, उधारिहैं तुलसीहू से जन,
जिन जानि कै गरीबी गाढ़ी गही है ||