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ये उपही कोउ कुँवर अहेरी |
स्याम गौर, धनु-बान-तूनधर चित्रकूट अब आइ रहे, री ||
इन्हहि बहुत आदरत महामुनि, समाचार मेरे नाह कहे, री |
बनिता-बन्धु समेत बसे बन, पितु हित कठिन कलेस सहे, री ||
बचन परसपर कहति किरातिनि, पुलक गात, जल नयन बहे, री |
तुलसी प्रभुहि बिलेकति एकटक, लोचन जनु बिनु पलक लहें, री ||