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चित्रकूट-वर्णन
रागचञ्चरी
चित्रकूट अति बिचित्र, सुन्दर बन, महि पबित्र,
पावनि पय-सरित सकल मल-निकन्दिनी |
सानुज जहँ बसत राम, लोक-लोचनाभिराम,
बाम अंग बामाबर बिस्व-बन्दिनी ||
रिषिबर तहँ छन्द बास, गावत कलकण्ठ हास,
कीर्तन उनमाय काय क्रोध-कन्दिनी |
बर बिधान करत गान, वारत धन-मान-प्रान,
झरना झर झिँग झिँग झिङ्ग जलतरङ्गिनी ||
बर बिहारु चरन चारु पाँडर चम्पक चनार
करनहार बार पार पुर-पुरङ्गिनी |
जोबन नव ढरत ढार दुत्त मत्त मृग मराल
मन्द मन्द गुञ्जत हैं अलि अलिङ्गिनी ||
चितवत मुनिगन चकोर, बैठे निज ठौर ठौर,
अच्छय अकलङ्क सरद-चन्द-चन्दिनी |
उदित सदा बन-अकास, मुदित बदत तुलसिदास,
जय जय रघुनन्दन जय जनकनन्दिनी ||