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जब जब भवन बिलोकति सूनो |
तब तब बिकल होति कौसल्या, दिन दिन प्रति दुख दूनो ||
सुमिरत बाल-बिनोद रामके सुन्दर मुनि-मन-हारी |
होत हृदय अति सूल समुझि पदपङ्कज अजिर-बिहारी ||
को अब प्रात कलेऊ माँगत रुठि चलैगो, माई !|
स्याम-तामरस-नैन स्रवत जल काहि लेउँ उर लाई ||
जीवौं तौ बिपति सहौं निसि-बासर, मरौं तौ मन पछितायो |
चलत बिपिन भरि नयन रामको बदन न देखन पायो ||
तुलसिदास यह दुसह दसा अति, दारुन बिरह घनेरो |
दूरि करै को भूरि कृपा बिनु सोकजनित रुज मेरो ?||