(58)
अवध बिलोकि हौं जीवत रामभद्र-बिहीन!
कहा करिहैं आइ सानुज भरत धरमधुरीन ||
राम-सोक-सनेह-सङ्कुल, तनु बिकल,मनु लीन |
टुटि तारो गगन-मग ज्यों होत छिन-छिन छीन ||
हृदय समुझि सनेह सादर प्रेम पावन मीन |
करी तुलसीदास दसरथ प्रीति-परमिति पीन ||
(58)
अवध बिलोकि हौं जीवत रामभद्र-बिहीन!
कहा करिहैं आइ सानुज भरत धरमधुरीन ||
राम-सोक-सनेह-सङ्कुल, तनु बिकल,मनु लीन |
टुटि तारो गगन-मग ज्यों होत छिन-छिन छीन ||
हृदय समुझि सनेह सादर प्रेम पावन मीन |
करी तुलसीदास दसरथ प्रीति-परमिति पीन ||