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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 50 से 60/पृष्ठ 9

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अवध बिलोकि हौं जीवत रामभद्र-बिहीन!
कहा करिहैं आइ सानुज भरत धरमधुरीन ||

राम-सोक-सनेह-सङ्कुल, तनु बिकल,मनु लीन |
टुटि तारो गगन-मग ज्यों होत छिन-छिन छीन ||

हृदय समुझि सनेह सादर प्रेम पावन मीन |
करी तुलसीदास दसरथ प्रीति-परमिति पीन ||