(80)
रागरामकली
राखी भगति-भलाई भली भाँति भरत |
स्वारथ-परमारथ-पथी जय जय जग करत ||
जो ब्रत मुनिवरनि कठिन मानस आचरत |
सो ब्रत लिए चातक-ज्यों सुनत पाप हरत ||
सिंहासन सुभग राम-चरन-पीठ धरत |
चालत सब राजकाज आयसु अनुसरत ||
आपु अवध, बिपिन बन्धु, सोच-जरनि जरत |
तुलसी सम-बिषम, सुगम-अगम लखि न परत ||