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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 71 से 80/पृष्ठ 10

(80)
रागरामकली

राखी भगति-भलाई भली भाँति भरत |
स्वारथ-परमारथ-पथी जय जय जग करत ||

जो ब्रत मुनिवरनि कठिन मानस आचरत |
सो ब्रत लिए चातक-ज्यों सुनत पाप हरत ||


सिंहासन सुभग राम-चरन-पीठ धरत |
चालत सब राजकाज आयसु अनुसरत ||

आपु अवध, बिपिन बन्धु, सोच-जरनि जरत |
तुलसी सम-बिषम, सुगम-अगम लखि न परत ||