(75)
काहेको मानत हानि हिये हौ?
प्रीति-नीति-गुन-सील-धरम कहँ तुम अवलम्ब दिये हौ ||
तात! जात जानिबे न ए दिन, करि प्रमान पितु-बानी |
ऐहौं बेगि, धरहु धीरज उर कठिन कालगति जानी ||
तुलसिदास अनुजहि प्रबोधि प्रभु चरनपीठ निज दीन्हें |
मनहु सबनिके प्रान-पाहरु भरत सीस धरि लीन्हें ||