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रागगौरी
कैकयी करी धौं चतुराई कौन?
राम-लषन-सिय बनहि पठाए, पति पठए सुरभौन ||
कहा भलो धौं भयो भरतको, लगे तरुन-तन दौन |
पुरबासिन्हके नयन नीर बिनु कबहुँ तो देखति हौं न ||
कौसल्या दिन राति बिसूरति, बैठि मनहिं मन मौन |
तुलसी उचित न होइ रोइबो, प्रान गए सँग जौ न ||