(81)
मोहि भावति, कहि आवति नहि भरतजूकी रहनि |
सजल नयन सिथिल बयन प्रभु-गुन-गन कहनि ||
असन-बसन-अयन-सयन धरम गरुअ गहनि |
दिन दिन पन-प्रेम-नेम निरुपधि निरबहनि ||
सीता-रघुनाथ-लषन-बिरह-पीर सहनि |
तुलसी तजि उभय लोक रामचरन-चहनि ||
(81)
मोहि भावति, कहि आवति नहि भरतजूकी रहनि |
सजल नयन सिथिल बयन प्रभु-गुन-गन कहनि ||
असन-बसन-अयन-सयन धरम गरुअ गहनि |
दिन दिन पन-प्रेम-नेम निरुपधि निरबहनि ||
सीता-रघुनाथ-लषन-बिरह-पीर सहनि |
तुलसी तजि उभय लोक रामचरन-चहनि ||