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जानी है सङ्कर-हनुमान-लषन-भरत राम भगति |
कहत सुगम, करत अगम, सुनत मीठी लगति ||
लहत सकृत, चहत सकल, जुग जुग जगमगति |
राम-प्रेम-पथतें कबहुँ डोलति नहिं, डगति ||
रिधि-सिधि, बिधि चारि सुगति जा बिनु गति अगति |
तुलसी तेहि सनमुख बिनु बिषय-ठगिनि ठगति ||