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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 81 से 89/पृष्ठ 3

(83)
रागगौरी
 
कैकयी करी धौं चतुराई कौन?
राम-लषन-सिय बनहि पठाए, पति पठए सुरभौन ||

कहा भलो धौं भयो भरतको, लगे तरुन-तन दौन |
पुरबासिन्हके नयन नीर बिनु कबहुँ तो देखति हौं न ||

कौसल्या दिन राति बिसूरति, बैठि मनहिं मन मौन |
तुलसी उचित न होइ रोइबो, प्रान गए सँग जौ न ||
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