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हाथ मीञ्जिबो हाथ रह्यो |
लगी न सङ्ग चित्रकूटहुतें, ह्याँ कहा जात बह्यो ||
पति सुरपुर, सिय-राम-लषन बन, मुनिब्रत भरत गह्यो |
हौं रहि घर मसान-पावक ज्यों मरिबोइ मृतक दह्यो ||
मेरोइ हिय कठोर करिबे कहँ बिधि कहुँ कुलिस लह्यो |
तुलसी बन पहुँचाइ फिरी सुत, क्यों कछु परत कह्यो ?||