(12)
जटायुसे भेण्ट
मेरे एकौ हाथ न लागी |
गयो बपु बीति बादि कानन ज्यों कलपलता दव दागी ||
दसरथसों न प्रेम प्रतिपाल्यौ, हुतो जो सकल जग साखी |
बरबस हरत निसाचर पतिसों हठि न जानकी राखी ||
मरत न मैं रघुबीर बिलोके तापस बेष बनाए |
चाहत चलन प्रान पाँवर बिनु सिय-सुधि प्रभुहि सुनाए ||
बार-बार कर मीञ्जि, सीस धुनि गीधराज पछिताई |
तुलसी प्रभु कृपालु तेहि औसर आइ गए दोउ भाई ||