शबरीसे भेण्ट
.रागसूहो
सबरी सोइ उठी, फरकत बाम बिलोचन-बाहु |
सगुन सुहावने सूचत मुनि-मन-अगम उछाहु ||
मुनि-अगम उर आनन्द, लोचन सजल, तनु पुलकावली |
तृन-पर्नसाल बनाइ, जल भरि कलस, फल चाहन चली ||
मञ्जुल मनोरथ करति, सुमिरति बिप्र-बरबानी भली |
ज्यों कलप-बेलि सकेलि सुकृत सुफूल-फूली सुख-फली ||