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गीतावली अरण्यकाण्ड पद 1 से 5/पृष्ठ 4

(4).
रागकल्याण
कर सर-धनु, कटि रुचिर निषङ्ग |
प्रिया-प्रीति-प्रेरित बन-बीथिन्ह बिचरत कपट-कनक-मृग सङ्ग ||

भुज बिसाल, कमनीय कन्ध-उर, स्रम-सीकर सोहैं साँवरे अंग |
मनु मुकुता मनि मरकत गिरिपर लसत ललित रबि-किरनि प्रसङ्ग ||

नलिन नयन, सिर जटा-मुकुट, बिच सुमन-माल मनु सिव-सिर गङ्ग |
तुलसिदास ऐसी मूरति की बलि, छबि बिलोकि लाजैं अमित अनङ्ग ||