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प्रेम-पट पाँवड़े देत, सुअरघ बिलोचन-बारि |
आस्रम लै दिए आसन पङ्कज-पाँय पखारि ||
पद-पङ्कजात पखारि पूजे, पन्थ-श्रम-बिरति भये |
फल-फूल अंकुर-मूल धरे सुधारि भरि दोना नये ||
प्रभु खात पुलकित गात, स्वाद सराहि आदर जनु जये |
फल चारिहू फल चारि दहि, परचारि-फल सबरी दये ||