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सुमन बरषि, हरषे सुर, मुनि मुदित सराहि सिहात |
"केहि रुचि केहि छुधा सानुज माँगि माँगि प्रभु खात ||
प्रभु खात माँगत देति सबरी, राम भोगी जागके |
पुलकत प्रसंसत सिद्ध-सिव-सनकादि भाजन भागके ||
बालक सुमित्रा कौसिलाके पाहुने फल-सागके |
सुनि समुझि तुलसी जानु रामहि बस अमल अनुरागके ||