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गीतावली अरण्यकाण्ड पद 20 से 25/पृष्ठ 3

(17) (6)
रघुबर अँचै उठे, सबरी करि प्रनाम कर जोरि |
हौं बलि बलि गई, पुरई मञ्जु मनोरथ मोरि ||

पुरई मनोरथ, स्वारथहु परमारथहु पूरन करी |
अघ-अवगुनन्हिकी कोठरी करि कृपा मुद मङ्गल भरी ||

तापस-किरातिनि-कोल मृदु मूरति मनोहर मन धरी |
सिर नाइ, आयसु पाइ गवने, परमनिधि पाले परी ||

सिय-सुधि सब कही नख-सिख निरखि-निरखि दोउ भाइ |
दै दै प्रदच्छिना करति प्रनाम, न प्रेम अघाइ ||

अति प्रीति मानस राखि रामहि, राम-धामहि सो गई |
तेहि मातु-ज्यों रघुनाथ अपने हाथ जल-अंजलि दई ||

तुलसी-भनित, सबरी-प्रनति, रघुबर-प्रकृति करुनामई |
गावत, सुनत, समुझत भगति हिय होय प्रभु पद नित नई ||