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गीतावली अरण्यकाण्ड पद 6 से 10/पृष्ठ 3

(8)
जटायु-वध
फिरत न बारहि बार प्रचार्यो |
चपरि चोञ्च-चङ्गुल हय हति, रथ खण्ड खण्ड करि डार्यो ||

बिरथ-बिकल कियो, छीन लीन्हि सिय, घन घायनि अकुलान्यो |
तब असि काढ़ि, काटि पर, पाँवर लै प्रभु-प्रिया परान्यो ||

रामकाज खगराज आजु लर्यो, जियत न जानकि त्यागी |
तुलसिदास सुर-सिद्ध सराहत, धन्य बिहँद बड़भागी ||